लाख - करोड़ की बातें

लाख - करोड़ की बातें      
 


भाई लोगों , वह क्या है कि बड़े - ऊंचे दिमाग वालों व विशेष ज्ञानी जनों के श्री - मुख से अक्सर यह सुनने में आता रहा है ... आ रहा है , और दौर - ए - वक़्त का यही हाल रहा तो और जोर की धमक के साथ यह में सुनने में आता रहेगा कि पैसे की कीमत तेजी से गिर रही है। जी हां जनाब , सुनने में कुछ अजीब सा नहीं लगता है कि उस पैसे की कीमत तेजी से गिर रही है जो कि इंसान कहलाने वाले दोपाया जीवों के लिए इस दुनिया के बड़े से मेले व बाजार में  यकीनन ही सबसे कीमती व आसानी से न मिल पाने वाली बेशकीमती चीज है।यानि कि वह पैसा महान जिसके लिए आम जनता - जनार्दन को तरह - तरह के शास्त्रीय नृत्य करने पड़ जाते हैं , और दिन दहाड़े तारों के दर्शन करने पड़ जाते हैं।अब देखिये न कि अपने  आम हिन्दुस्तानियों के भारत - महान में लाख - करोड़ - अरबों की मायावी - तिलस्मी - करामाती  बातें कितनी आम होती जा रही हैं। अब लगता ही नहीं है जनाब कि भई मामला लाख का है - करोड़ का है , यूं लगने लगा है कि बात जैसे सौ - दो सौ रुपए की हो रही हो। और इसका पूरा - पूरा श्रेय यकीनन ही अपने देश महान में तेजी से चल रही घपलों - घोटालों व तमाम आर्थिक अपराधों की आंधी - सुनामी व इसके नित हो रहे नए - नए सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बिना किसी बेईमानी के जाता है। इसके चलते सौ और हज़ार की तो ऐसी स्थिति हो गयी है भईया कि उसे अपना वज़ूद बचाये रखना कठिन हो गया है। बात यहाँ तक दब - सिकुड़ कर रही होती , तब भी झेलनीय हो सकती थी ... कोढ़ में खाज तो यह हो गया कि लाख - करोड़ के पहले सौ - हज़ार का गठजोड़ हो गया।  जी हाँ जनाब यानि कि मामला इतने हज़ार - सौ लाख का या फिर उससे ऊँची पायदान पर चढ़कर हज़ार करोड़ तक पर जा बैठा है अपने लोकतंत्र - महान में। कहा जाता है कि पैसे को पैसा पकड़ता है ... यानि कि पैसा अपने रंग में पैसे को रंग लेता है , शायद यही कारण है कि लाखों - करोड़ों के आगे उसकी शोभा में चार चाँद लगाने को ' सौ - हज़ार 'भी जुड़ गया।  अब आप ही देखिये न कि यदि आप ' इतने लाख ' कहें , या फिर इतने सौ - हज़ार लाख कहें तो दोनों में कितना फर्क दिखने लगता है।  इस चहुमुंखी विकास पर कॉलर शान से खड़े कर लेने की इच्छा यकायक प्रबल हो पड़ती है जनाब।सबके अमूल्य साथ के साथ सबका विकास भी देखिये तो की कहाँ से कहाँ जा पहुंचा है। लेकिन अफ़सोस की बात तो यह है कि इस गजब की राष्ट्रीय उपलब्धि के लिए जिनकी प्रशंसा  होनी चाहिए , हम सब उनको बुरी दृष्टि से देखकर खलनायक का दर्जा दे देते हैं , और विवश होकर उनको बड़े भारी मन से बेहद मज़बूरी के साथ देश से विदा लेकर परदेश तिड़ी हो जाना पड़ जाता है। यकीनन ही उनका दिल दर्द से रोता होगा कि जिस अपने वतन में उन्होंने लाख - करोड़ के सम्मान में उसके आगे  ' सौ - हज़ार ' जोड़कर इसकी इतनी श्री - वृद्धि की , देश के बैंकों के विशाल कोष जो कि अकूत धन - मुद्रा के भार से दबे कराह से रहे थे उनको हल्का - ख़ाली कर अपने कर्तव्यों का ' शानदार ढंग ' से निर्वहन किया ,उसने उनको क्या दिया सिर्फ बदनामी - अपमान के ,और इसका दूसरा पहलू तो देखिये कि विदेश ने - बाहरी देशों ने ससम्मान उन्हें अपने स्नेहिल आँचल में प्रेम से समा लिया , और सब देशों का मित्र कहलाने वाले भारत - महान को उसके साथ सहयोग करने के मामले में अपनी सच्ची दोस्ती का परिचय दे दिया। देश - महान में सबके साथ के साथ तेज़ी से फल - फूल रहे व उर्वरता पा रहे विजय माल्या - नीरव मोदी प्रजाति के जीवों के ' अथक ' व ऐतहासिक प्रयासों से लाख - करोड़ व अरब को उनके वास्तविक कद के अनुसार अब जो गरिमा मिली है , उसे हलके में लेना व संकुचित दृष्टि के चश्मे से देखना - ताड़ना कुछ सही नहीं लगता है भाई लोगों। अपने पुरुस्कार - प्रधान देश में जहाँ पर कि तमाम पुरुस्कार आलू - प्याज़ व गाजर - मूली के मानिंद बाँट दिए जाते हैं - दान में दे दिए जाते हैं  क्योंकि ' मोगाम्बो ' खुश जो होता है , वहां पर क्या इन ' धन - वीरों ' व ' धन पराक्रमियों ' की अमूल्य व स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने वाली ऐतहासिक सेवाओं के लिए कोई सम्मान नहीं बनता है क्या। दो - चार पैसे , जरा - जरा सी नकदी के लिए मरते - खपते  दो पाया जीव देश की एक विशेष - संस्कृति की पहचान पाते हुए इतना  ' हाईलाइट 'हो जाते हैं , और बहुतों के लिए ' कच्चा माल ' व मोहरे बनने का काम आ जाने का मुक़ाम पा जाते हैं , और जो धन को इतनी ऊंचाईयों तक पहुँचाने का जबरदस्त काम करता है , उसको अपने यहाँ बदनामी व रुसवाई मिलती है ... यह तो बहुत नाइंसाफी की बात है अपने सारे जहाँ से अच्छे लोकतंत्र  महान में।अब आप ही सोचो न कि लाख - करोड़ - अरब की बात करने में कितने सुख का अहसास होता है , दिमाग कितनी - कितनी ऊंचाइयों तक पहुँच जाने के गौरव को महसूस करता है कि न मिले सही , पर ख्यालों में तो यह बात आ ही जाती है , और जिसकी वजह से आती है , जो इंसान - महान उसके जन्मदाता व अविष्कारक होते हैं ...उनको तवज्जो व ख़ास स्थान नहीं मिलता है अपने यहाँ।  भई क्या विडंबना - विसंगति हैं अपने राष्ट्र महान में , सोचो - मानो तो बहुत कुछ ... वर्ना कुछ भी नहीं ... केवल इसके कि गर्व से - शान से लाख - करोड़ - अरब की बात उसके आगे ' सौ - हज़ार ' और जोड़ कर करते जाओ।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    संदीप सक्सेना -                                                                                                                                                                     72 , नारायण नगर


राम सागर मिश्रा नगर                                                                                                                                                            लखनऊ - 226016 .                                                                                                                                                          मो - 9415902732 .