सभी धर्मों से श्रेष्ठ- चाटुकारिता धर्म.

सभी धर्मों से श्रेष्ठ- चाटुकारिता धर्म.


चाटूकारिता धर्म भी हो सकता, इनकी पूरी अलग दुनिया और संस्कृति होती है चारण संस्कृति।


 कुछ लोग तलवे को भी चाटते हैं इसके लिए वह बड़े साहब का पहले जूता उतारते हैं सूंघते हैं फिर तारीफ करते हैं फिर मोजा उतारते हैं फिर सूंघते हैं फ़िर तारीफ करते हैं उसको तलवे को चाटकर अपनी उदर पूर्ति करते हैं। यह 'तलवाचाट'  लोग हर संस्कृति जाति धर्म और व्यवसाय में पाए जाते हैं इनका काम ही यही है कोई भी पार्टी हो उसमें जी हजूरी और अपनी जिह्वा के माध्यम से बड़े लोगों के खास बने रहना। भले ही रोज दिन में 10 बार दुत्कार जाते हैं।  फिर भी यह यह हंसते खेलते हर सितम ऐसे सहन करते हैं कि जैसे कोई उन्हें अवार्ड मिला हो, और वे ही इसके योग्य हों।


इसमें भी अवार्ड का भी भी एक अलग महत्व है बिना बात के भी अवार्ड मिल सकता है। अवार्ड यह केवल इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस किस ग्रुप या गैंग को संबंध है, या साहब की आपके आपके ऊपर कितनी कृपा दृष्टि है। साहब कौन सी चटनी के साथ कौन से समोसे खाएंगे, ताकि जिससे कृपा दृष्टि बनी रहे और कृपा आती रहे। यह भी अपना एक विज्ञान है, इसको भी समझना पड़ेगा। जो अच्छे किस्म के चारण होते होते हैं वह पाककला में भी माहिर होते हैं। वे जानते हैं कि दिल का रास्ता पेट के जरिए होकर के जरिए होकर पेट के जरिए होकर जाता है। और एक बार किसी के दिल में बस गए तो बस उसका दिमाग बंद हो जाता है। फ़िर गुण अवगुण का भेद खत्म हो जाता है।  सब धान बाईस पसेरी हो जाता। कोई भी तरतम का भेद नहीं नहीं, जैसा तू वैसा मैं। जैसे साहब के कपड़े वैसे मेरे कपड़े, जैसे साहब की कलम वैसे मेरी कलम, जैसे साहब की टोपी वैसे ही मेरी टोपी।  और अब यही टोपी सबके सर पर पहनाना अपना परम कर्तव्य बन जाता है। 


साहब के सब अवगुण स्टाइल बन जाते हैं हैं और बंदे के सब अवगुण क्वालिफिकेशन।


 यह एक अजीब सा बात है जो भारतीय दर्शन में ही दिखता दिखता है की भक्त और भगवान में एकरूपता आ जाती है यह एक अलग किस्म की भक्ति है, जिसमें भक्त धीरे धीरे अपने भगवान का ही सेवन करने लग जाता है। मेड़ ही खेत खाने लग जाती है। किसी ने कहा तो चमचों को पकड़ कर कर रखिए नहीं तो हाथ से फिसल जाएंगे और इनकी खासियत होती है यह चमचे जिस जिस कटोरी में होते हैं उसी कटोरी को खाली करते हैं। 


चमचों की महिमा भी अपरंपार है। धीरे धीरे यह कार्यालयी कार्यों में दखल देने देने लगते हैं और साहब के विवेक के अधीन अपने निर्णय लागू करने लगते हैं चाहे वह खरीद हो या कोई और नीतिगत मसला।  एकरूपता  तो इतनी हो जाती है कि कई बार यह समझना कठिन हो जाता है कि कौन सा निर्णय साहब ने लिया और कौन सा सा बंदे ने। वैसे ही होता है जैसे भगवान अपनी शक्ति किसी इंसान को दे दे तो वह भी इंसान भी भगवान की तरह ही अपनी शक्ति प्रदर्शन करने लगता है।


 दरअसल यह ही सच्चा चमचा होता है जो खुद को अपने साहब में विलीन कर देता कर देता है और साहब भी बंदे द्वारा सप्लाइड तरल में इतना घुल जाते हैं बंदे में की वह खुद बंदे की बन्दागिरी करने लग जाते हैं। कभी कभी साहब फरमाइश भी कर बैठते हैं कि अगली बार और बढ़िया वाला विदेशी तरल लाना। 


 कुछ साहब अपने खासम खास बंदो को  अपने साथ टूर पर चले जाते हैं।  यह भी घर से दूर किसी अति महत्वपूर्ण कार्य को करने जैसा ही होता है। एक मिशन होता है और टारगेट होता है। मिशन और टारगेट के अनुसार जहां साहब रुकते हैं, वहां व्यवस्था होती है। टारगेट देशी या विदेशी हो सकता है, या मिश्रित भी। यह मिश्रण  ठेकेदार द्वारा  मिलाए जाने वाले  बालू में  सीमेंट  के  अनुपात के अनुसार होता है। मिशन ठेकेदार का टारगेट साहब का। इस बात पर ठेकेदार साहब को सैर करा देता है और ठेका मिलने का मिशन पूरा हो जाता है।  यह गोपनीय रहस्य समाज में अनेक रूपों से दृष्यमान होता रहता है और हम समझते हैं की देश का निर्माण हो रहा है।


 इधर एक भूतपूर्व चाटुकार मिले जिनके खिलाफ वर्तमान साहब नेउ इंक्वायरी चला रखी थी मामला दरअसल यह था कि पुराने साहब की मेमसाहब को गाय की बजाय कुत्तों से लगाव था। सो फटाफट सड़क छाप कुत्तों के आवास व पुनर्वास की स्कीम बनी। साहब के प्रभाव से स्वीकृत भी हो गयी। परियोजना के पैसों से दो विदेशी नस्ल के अंग्रेजी समझने वाले जोड़े का जुगाड़ हुआ। जो सिट डाउन कहने पर बैठ जाते थे। फिर उनके लिए फ़ूड भी आना था। तो सड़क छाप पुनर्वासित कुत्तों के पुष्टाहार की व्यवस्था हुई। उनमें से बहुत से कुत्ते इतना पौष्टिक आहार पचा नही सके, असमय काल कलवित हो गए। मगर गाय के चारे जैसा आहार आता रहा। विदेशी नस्ल के लिए विदेशी चारा आया। भाभीजी को दिया कि इसे ट्राई करें। साहब के कुत्तों को खाना पसंद आया। फिर क्या कुत्तों के पुष्टाहार विदेश से आने लगे। इस बीच  बंदे ने एक प्लॉट भी ले लिया ले लिया जिस पर अपना मकान बना लिया जिससे बंदे के घरवाले खुश हो गए खुश हो गए।  मूल मंत्र निकला कि भाभीजी खुश तो साहब खुश ऐसे में तो बन्दे को खुश तो होना लाज़मी ही था।


 ऐसे खुशहाल बंदे को देखकर नए साहब ने पूछा बहुत खुश नजर आ रहे हो। यहीं से इंक्वायरी शुरू हो गई और खुशियां काफूर। अपने को घिरता देख भूतपूर्व चमचे ने नए साहब जो गाय प्रेमी थे के ऊपर डोरे डालने लगा,  और गाय से संबंधित समस्त ज्ञान उन्हें देने लगा। एक ऐसी गाय की  बात बताई जिसके दूध में सोना था फिर उसने बताया कि कई साल से उसने सोना इकट्ठा किया और जिससे  शुद्ध दूध से निकले हुए  सोने के  कान के दो नए बूंदे बनवा दिए और उन्हें दे दिया भाभी जी के लिए जिसे पाकर नए साहब भी खुश हो गए गए।  साहब का दिल पसीज गया गायों की दशा को देखकर फौरन उन्होंने गाय के लिए भी योजना चलाने की बात की।  चमचे ने फौरन नोएडा में फ्लैट बुक करने के लिए सोचा। 


भगवत कृपा और गौ माता के के अनुकंपा से शायद एक मकान और हो जाए।


-डॉ संजीव कुमार ओझा
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